"शायद!"
शायद तुम मेरी
जिंदगी की
वास्तविक पहचान हो,
शायद मेरी आत्मा
तेरी ही मोहताज
हो,
शायद तेरे आगमन
से मेरा दिल
कुछ खिल उठेगा,
शायद तेरे प्रस्थान
से मेरा दिल
कुछ जल उठेगा.
शायद निशा की
ओट में तुम
मेरी पहचान हो,
शायद दिवा के
बाट में तू
चढ़ी आसमान हो,
शायद रागिनी के गुंजनो
के बीच में,
शायद कोकिला के तान
के रसपान में,
शायद अमित अनुराग
के पद तले
मै जल रहा,
शायद अविश्वास के प्रचंड
अग्नि के समक्ष
मै ढल रहा,
शायद तू मन्दाकिनी
के धर पर
हो चल रही,
शायद तू गगन
सोपान की उचाई
पर हो चढ़
रही,
शायद मेरे जीवन
की तुम ही
साया रही,
शायद मेरे शील की तू
करुण काया रही,
शायद तू दिव्य
अवतार की शाश्वत
गाथा रही,
शायद तू स्नेह
की अदृश्य दाता
रही,
शायद मेरी महफ़िल
की जगती दस्तूर
हो तुम,
शायद मेरे राग
सुधा की भरी
सिन्दूर हो तुम,
शायद मेरे मंतव्य
की तू ही
विषय वस्तु हो
तुम,
शायद मेरी जिंदगी
की वास्तविक पहचान
हो तुम.
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