Monday, June 18, 2012

ख्वाबो की वो रानी!

रोज रात को पलकों के नीचे,
ख्वाबो में उनसे मुलाक़ात होती है,
दिल कुछ पल के लिए
रूमानियत से परिपूर्ण हो जाता है.
उसके स्वछ ,उज्जवल आँखों से
अपरिमित प्यार उमड़ पड़ता है,
सफ़ेद उस परिधान में बिलकुल मेनका सी प्रतीति,
उसकी मृदुल आवाज मुझे
जन्नत का सैर करा देती है,
प्यार से मेरी पीठ पर एक
हल्की सी थपकी लगा देती है,
वह सुन्दरता की देवी है,
शीतलता की प्रतिबिम्ब !
नित रातो को ख्वाबो में
मुलाक़ात होती है.
उसकी छरहरी काया से
लिपटे वो परिधान भी काफी कीमती जचते,
मै निश्चय ही आश्चर्य से
उसे निहारता रह जाता हू,
अपलक! सुबह होने तक!
Ankit Srivastava
मेरी दूसरी कविता:
"ममता"

बह रहा अविरल प्रवाह माता
के दीप्त नयनो से है,
रणभूमि में पुत्र त्याग कर
वो बहा रही करुण आशा प्रेम की,

अंतर में संतोषप्रद है,

बहुर्मुख धूमिल प्रण है,
कोमल रसोस्वादन ब्रह्माण्ड के,
फिर भी आश लगाये वह
प्रदीप्त है जीवन के नीरस सन्दर्भ से.

शायद!



"शायद!"
शायद तुम मेरी जिंदगी  की वास्तविक पहचान हो,
शायद मेरी आत्मा तेरी ही मोहताज हो,
शायद तेरे आगमन से मेरा दिल कुछ खिल उठेगा,
शायद तेरे प्रस्थान से मेरा दिल कुछ जल उठेगा.
शायद निशा की ओट में तुम मेरी पहचान हो,
शायद दिवा के बाट में तू चढ़ी आसमान हो,
शायद रागिनी के गुंजनो के बीच में,
शायद कोकिला के तान के रसपान में,
शायद अमित अनुराग के पद तले मै जल रहा,
शायद अविश्वास के प्रचंड अग्नि के समक्ष मै ढल रहा,
शायद तू मन्दाकिनी के धर पर हो चल रही,
शायद तू गगन सोपान की उचाई पर हो चढ़ रही,
शायद मेरे जीवन की तुम ही साया रही,
शायद मेरे शील की तू करुण काया रही,
शायद तू दिव्य अवतार की शाश्वत गाथा रही,
शायद तू स्नेह की अदृश्य दाता रही,
शायद मेरी महफ़िल की जगती दस्तूर हो तुम,
शायद मेरे राग सुधा की भरी सिन्दूर हो तुम,
शायद मेरे मंतव्य की तू ही विषय वस्तु हो तुम,
शायद मेरी जिंदगी की वास्तविक पहचान हो तुम.