Monday, June 18, 2012

Ankit Srivastava
मेरी दूसरी कविता:
"ममता"

बह रहा अविरल प्रवाह माता
के दीप्त नयनो से है,
रणभूमि में पुत्र त्याग कर
वो बहा रही करुण आशा प्रेम की,

अंतर में संतोषप्रद है,

बहुर्मुख धूमिल प्रण है,
कोमल रसोस्वादन ब्रह्माण्ड के,
फिर भी आश लगाये वह
प्रदीप्त है जीवन के नीरस सन्दर्भ से.

No comments:

Post a Comment